- Description
A chronicle of an historic series of talks by Srila Prabhupada, who has been acclaimed by scholars as the greatest exponent of Vedic spiritual tradition, this book probes deeply into the nature of consciousness, meditation, karma, death and reincarnation. He prescribes a simple process to purify the mind and elevate the consciousness, which not only assures readers inner peace, but the power to change the chaotic trend of modern society within their own daily lives.
आज का विचारवान वाचक, जो स्वयं की परिपूर्णता और उसे प्राप्त करने का साधन खोज रहा है, उसे योगपथ पढ़कर बहुत छुटकारा मिलेगा और उसका मन उसे पूर्ण रूप से स्वीकार करेगा। यहाँ पर व्यक्ति को मानवजाति के आध्यात्मिक विकास की सबसे प्राचीन साधना-पद्धती व तत्वज्ञान का स्पष्ट एवं गुह्यतम स्पष्टीकरण प्राप्त होगा, जिसका दूसरा नाम योग है। कृष्णकृपामूर्ति ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद (१८९६-१९७७) योग के तत्त्वज्ञान का भगवद्गीता के अनुसार खुलासा देते है।
गीता उस दृश्य का वर्णन करती है, जब अर्जुन जो दुविधा में है तथा अपनी पहचान एवं कर्तव्य के बारे में संभ्रमित हो चुका है, वह श्रीकृष्ण की तरफ मुड़ता है और फिर भगवान श्रीकृष्ण अपने सक्षम विद्यार्थी के समक्ष योगपथ प्रकट करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाओं का सार यही है कि व्यक्ति को अपना जीवन भक्तियोग के अभ्यास पर केंद्रित करना चाहिए, जिसका अर्थ व्यक्तिगत चेतना एवं परम चेतना का मिलन है।
श्रील प्रभुपाद अपने ऐतिहासिक प्रवचनों की श्रृंखला द्वारा भक्तियोग की पद्धतियों का सुंदर विवेचन प्रदान करते हैं, जिसमें वे योग के इस सरल एवं सर्वसमावेशक रूप का सर्वव्यापी अस्तित्व साबित करते हैं। वे दिखाते हैं कि जो आधुनिक भौतिकवादी जीवन की जटिलता एवं हाहाकार में फँसे हैं, वे भी इस सीधी-सादी पद्धती को अपनाकर मन शुद्ध कर सकते हैं और अपनी चेतना को परमानंद की अवस्था तक उन्नत कर सकते हैं।
- Author :A. C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada
- Binding :paperback
- Pages:198 pages
- Publisher: The Bhaktivedanta Book Trust
- Language:Hindi
- ISBN-9789382716525
- Product Dimensions: 21.5x14x1
- weight:gram:200
Recently Viewed
- Choosing a selection results in a full page refresh.
- Opens in a new window.